09 जून 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
India Desk: भारत में भीषण गर्मी और लू ने हालात बेहद गंभीर बना दिए हैं। देश के कई हिस्सों में तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है और लोग लू की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं। लेकिन चिंता की बात ये है कि गर्मी से होने वाली मौ*तों के सही आंकड़े सामने नहीं आ पा रहे हैं। सिस्टम की खामियों के चलते न तो सटीक डाटा मौजूद है और न ही बचाव के उपायों पर सही दिशा में काम हो पा रहा है।
तीन विभाग, तीन आंकड़े – किस पर करें भरोसा?
गर्मी से होने वाली मौतों की जानकारी देश के तीन अलग-अलग विभाग देते हैं:
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एनसीडीसी (स्वास्थ्य मंत्रालय): 2015-2022 के बीच 3,812 मौ*तें।
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एनसीआरबी (गृह मंत्रालय): इसी अवधि में 8,171 मौ*तें।
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आईएमडी (मौसम विभाग): 3,436 मौ*तें – वो भी मीडिया रिपोर्टिंग पर आधारित।
हर संस्था अलग तरीका अपनाती है और डाटा संग्रह का कोई एकीकृत या पारदर्शी तरीका नहीं है।
मौ*त के असल कारण छिप जाते हैं :विशेषज्ञों के अनुसार, गर्मी से हुई मौ*तों को अक्सर हार्ट अटैक, स्ट्रोक या सामान्य कारणों में गिना जाता है। अस्पतालों में मैनुअल डाटा एंट्री, स्टाफ की कमी और धीमी रिपोर्टिंग के चलते भी सटीक जानकारी नहीं मिल पाती। यहां तक कि अधिकारी मुआवजा देने से बचने के लिए भी डाटा छिपा सकते हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म भी नाकाम :आईएचआईपी (IHIP) जैसे प्लेटफॉर्म मौजूद हैं, लेकिन डाटा फिर भी मैनुअली फॉर्म भरकर जमा किया जाता है, जिससे गलती की गुंजाइश बनी रहती है। पोस्टमार्टम से मिली जानकारी एनसीडीसी तक नहीं पहुंच पाती, जिससे बड़ी संख्या में मौतें डाटा में दर्ज ही नहीं होतीं।
नीति निर्माता गलत आंकड़ों पर बना रहे योजनाएं :स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक देश की मृ*त्यु रिपोर्टिंग प्रणाली मजबूत नहीं होती, तब तक सही नीति बनाना और लोगों की जान बचाना मुश्किल रहेगा। गर्मी से जुड़ी मौ*तों को लेकर अलग विभाग बनाने की मांग भी उठ रही है।
नतीजा – असल नुकसान छिप जाता है :ग्रीनपीस और अन्य संगठनों का कहना है कि आंकड़ों में विसंगति के चलते गर्मी से होने वाली तबाही की असली तस्वीर सामने नहीं आ पाती। जब तक डाटा प्रणाली पारदर्शी और प्रभावी नहीं बनती, तब तक मौतों का सही आंकलन मुमकिन नहीं।
निष्कर्ष:
भारत में गर्मी अब सिर्फ असहज मौसम नहीं, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य आपातकाल बन चुकी है। लेकिन जब तक सिस्टम सही डाटा नहीं देगा, तब तक न समाधान होगा, न सुरक्षा।