03 नवंबर, 2025 फैक्ट रिकॉर्डर
International Desk: अमेरिकी अदालत ने ट्रंप प्रशासन को झटका, पोर्टलैंड में नेशनल गार्ड की तैनाती पर लगाई रोक अमेरिका के ओरेगन राज्य की एक संघीय अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को पोर्टलैंड में नेशनल गार्ड की तैनाती से रोक दिया है। अदालत ने कहा कि शहर में हालात नियंत्रण से बाहर होने के कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिले। यह फैसला अमेरिकी जिला न्यायाधीश करीन इम्मरगट ने सुनाया, जो खुद ट्रंप द्वारा नियुक्त की गई थीं।
जज इम्मरगट ने अपने आदेश में कहा कि संघीय कानून के तहत सेना की घरेलू तैनाती की जो शर्तें हैं, वे इस मामले में पूरी नहीं होतीं। कोर्ट ने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने यह कदम उस समय उठाया था जब पोर्टलैंड और अन्य शहरों में इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एन्फोर्समेंट (ICE) कार्यालयों के बाहर प्रदर्शन हो रहे थे। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने सितंबर में अदालत का रुख किया था।
तीन दिन चली सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि स्थिति “बेकाबू” होने का कोई ठोस सबूत नहीं है। सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने 750 से अधिक साक्ष्य प्रस्तुत किए। अदालत अब इस पर अंतिम आदेश शुक्रवार को जारी करेगी।
यह मामला उन कई कानूनी विवादों का हिस्सा है जो अमेरिका के विभिन्न शहरों में ट्रंप प्रशासन द्वारा विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए सेना तैनात करने की कोशिशों से जुड़े हैं।
ट्रंप प्रशासन ने पहले कहा था कि वह 200 नेशनल गार्ड जवानों को 60 दिनों के लिए संघीय नियंत्रण में लेकर पोर्टलैंड भेजेगा, ताकि संघीय संपत्तियों की रक्षा की जा सके। ट्रंप ने शहर को “युद्धग्रस्त क्षेत्र” बताया था, लेकिन ओरेगन सरकार ने इस बयान को “अतिरंजित और हास्यास्पद” कहा। अधिकारियों के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन सीमित क्षेत्र में हो रहे थे और उनमें कुछ ही दर्जन लोग शामिल थे।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राष्ट्रपति का यह निर्णय संविधान और संघीय कानून का उल्लंघन है, जो सामान्य परिस्थितियों में सेना को घरेलू कानून लागू करने से रोकता है।
गौरतलब है कि ट्रंप ने लॉस एंजेलिस, वॉशिंगटन, शिकागो और मेम्फिस जैसे अन्य डेमोक्रेट-शासित शहरों में भी सैनिक भेजने की धमकी दी थी। पिछले महीने एक अन्य अदालत ने लॉस एंजेलिस में 4,700 सैनिकों की तैनाती को गैरकानूनी बताया था, हालांकि 300 सैनिकों को सीमित भूमिका में बने रहने की अनुमति दी गई थी, बशर्ते वे नागरिक कानून लागू न करें।













