01 सितम्बर 2025 फैक्ट रिकॉर्डर
Natoinal Desk: भारत में भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं: प्राकृतिक आपदा या मानवीय लापरवाही? भारत में हाल के वर्षों में भूस्खलनों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ प्राकृतिक कारणों से नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण भी हो रहा है। मुख्य वजहें
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार, हिमालय और पश्चिमी घाट सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं। भारी वर्षा, बदलते मानसूनी पैटर्न, वनों की अंधाधुंध कटाई, और अनियंत्रित निर्माण कार्य इन क्षेत्रों की स्थिरता को कमजोर कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन: ग्रीनहाउस गैसों और प्रदूषण के कारण वर्षा का पैटर्न बिगड़ रहा है। लगातार बारिश से मिट्टी और चट्टानों में नमी बढ़ जाती है, जिससे ढलान अस्थिर हो जाते हैं। भूगर्भीय संरचना: हिमालय और पश्चिमी घाट भूगर्भीय रूप से युवा और अस्थिर हैं। भूकंप और अपक्षय इन क्षेत्रों को और कमजोर बनाते हैं। मानवीय गतिविधियां: सड़कों का निर्माण, जंगलों की कटाई और बेतरतीब विकास प्राकृतिक जल निकासी को रोकते हैं, जिससे भूभाग की स्थिरता घट जाती है। वैज्ञानिकों की चेतावनी
GSI के डायरेक्टर जनरल असित साहा का कहना है कि प्रदूषण सीधे तौर पर भूस्खलन का कारण नहीं है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। इसका सीधा असर वर्षा और भूस्खलन की घटनाओं पर पड़ता है। संवेदनशील क्षेत्र
राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (NLSM) के तहत वैज्ञानिकों ने हिमालयी राज्यों—जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश—को उच्च जोखिम वाले क्षेत्र बताया है। इसी तरह, पश्चिमी घाट (केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु) और नीलगिरी व कोंकण तट भी खतरे में हैं। निष्कर्ष
भारत में भूस्खलन केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप का संयुक्त परिणाम है। यदि अनियंत्रित विकास और वनों की कटाई जारी रही तो आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम और गंभीर हो सकते हैं।