14 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
Punjab Desk: जालंधर में दवाइयों से बढ़ रहा ज़हर का खतरा! सावधान रहें
घरों में पड़ी अधूरी या एक्सपायरी दवाइयों को लोग अक्सर कचरे में फेंक देते हैं, लेकिन ये आदत इंसानों, जानवरों और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, एक्सपायरी दवाइयां समय के साथ जहरीले रसायनों में बदल सकती हैं, जिनका शरीर पर गंभीर असर हो सकता है।
शहर में नहीं है दवाइयों के निस्तारण की कोई ठोस व्यवस्था
जालंधर नगर निगम ने अब तक ऐसी दवाइयों को इकट्ठा करने के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की है। देश के कुछ शहरों में ‘मेडिसिन ड्रॉप बॉक्स’ जैसी पहलें शुरू की गई हैं, लेकिन जालंधर अभी इससे अछूता है। नतीजतन, लोग दवाइयों को या तो कूड़ेदान में फेंक देते हैं या नालियों में बहा देते हैं—जो पूरी तरह गलत तरीका है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल करीब 25% दवाइयां बिना इस्तेमाल के फेंक दी जाती हैं। अस्पतालों, फार्मेसियों और दवा कंपनियों के लिए तो बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के नियम हैं, लेकिन घरों से निकलने वाली दवाइयों को लेकर कोई स्पष्ट नीति अब तक नहीं बनाई गई है।
जागरूकता जरूरी है
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक शहर में दवाइयों के सुरक्षित निस्तारण की व्यवस्था नहीं होती, तब तक जन-जागरूकता ही सबसे बड़ा उपाय है। मोहल्ला समितियों, स्कूलों और सामाजिक संगठनों को मिलकर लोगों को यह सिखाना चाहिए कि दवाइयों को कैसे सुरक्षित रूप से फेंका जाए।
अभी क्या कर सकते हैं?
फार्मेसी रिटर्न पॉलिसी के तहत एक्सपायरी दवाइयां कुछ दुकानों पर वापस की जा सकती हैं (जहां यह सुविधा उपलब्ध हो)।
दवाइयों को मिट्टी, चायपत्ती या कॉफी के अवशेष के साथ मिलाकर सीलबंद पैकेट में फेंकें, ताकि जानवर या बच्चे उन्हें दोबारा न निकाल सकें।
दवाइयों को नालियों या खुले कचरे में न डालें, इससे प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम दोनों बढ़ते हैं।
क्या हो सकता है खतरा?
शहर के कई हिस्सों में कचरे के ढेर से उठाई गई दवाइयां जानवरों या यहां तक कि बच्चों के हाथ लग सकती हैं, जो जानलेवा साबित हो सकता है। इसके अलावा, इससे मिट्टी और जल स्रोत भी प्रदूषित होते हैं। चिंता की बात यह है कि जालंधर जैसे बड़े शहर में भी करीब 80% लोग नहीं जानते कि दवाओं का सही निस्तारण कैसे किया जाए।
हर साल लाखों दवाइयां हो जाती हैं बर्बाद
जब तक इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जाते और लोगों को जागरूक नहीं किया जाता, तब तक ये दवाइयां न सिर्फ बर्बाद होती रहेंगी, बल्कि जहर बनकर हमारे पर्यावरण और जीवन के लिए खतरा भी बनती रहेंगी।