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सोनीपत के नौ गांवों में गंभीर लिंगा*नुपात संकट, हेल्थ विभाग की नींद अब टूटी: डीजी हेल्थ ने दिए सख्त आदेश

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24/04/2025 Fact Recorder

हरियाणा के सोनीपत जिले के नौ गांवों में बेटियों की संख्या में लंबे समय से कोई सुधार नहीं हो सका है। हालात इतने खराब हैं कि इन गांवों में लिंगानुपात 700 से नीचे बना हुआ है। अब जाकर स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी है और हरियाणा डीजी हेल्थ सेवाओं ने सख्त निर्देश जारी करते हुए तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।

इन गांवों में हालात बेहद चिंताजनक जिले के जफरपुर, बुलंदगढ़ी, लड़सौली, झुंडपुर, मल्हा माजरा, किड़ोली, आनंदपुर, माजरी और ग्यासपुर जैसे गांवों में लिंगानुपात की स्थिति बेहद निराशाजनक है। इन गांवों में प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या लगातार 700 से नीचे दर्ज हो रही है। यह आंकड़े सामाजिक संतुलन के लिए खतरे की घंटी हैं।
अब तक नहीं उठाए गए ठोस कदम हालांकि यह कोई नई समस्या नहीं है, परंतु स्थानीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा अब तक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। विभाग की निष्क्रियता और लापरवाही की वजह से सालों से यह स्थिति जस की तस बनी हुई है। अब सवाल यह है कि विभाग ने इतने सालों तक आखिर किसका इंतजार किया?
डीजी हेल्थ ने दिए तत्काल कैंप लगाने के निर्देश

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए डीजी हेल्थ हरियाणा ने आदेश जारी कर कहा है कि इन गांवों में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान के तहत 25 अप्रैल से मोटिवेशनल कैंप आयोजित किए जाएं। महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से आयोजित होने वाले इन कैंपों में स्थानीय अधिकारी, कर्मचारी और ग्रामीण भाग लेंगे। कैंप में प्रेरणादायक भाषण, पोस्टर प्रदर्शनी और जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से लड़का-लड़की के बीच समानता का संदेश दिया जाएगा।

सवाल ये भी: क्या एक दिन के कैंप से बदलेगी सोच?

हालांकि यह प्रयास सराहनीय है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ एक दिन के कैंप से लोगों की वर्षों पुरानी सोच में बदलाव आ पाएगा? क्या यह पहल सिर्फ दिखावे तक सीमित रहेगी या इसके बाद भी विभाग निगरानी और कार्रवाई करेगा?

वास्तविक बदलाव के लिए दीर्घकालिक रणनीति जरूरी

स्वास्थ्य विभाग ने इन कैंपों की व्यापक मीडिया कवरेज के निर्देश भी दिए हैं, जिससे यह कवायद कहीं विभाग की छवि सुधारने की कोशिश न लगे। ज़मीनी हकीकत यह है कि अगर विभाग समय रहते सक्रिय होता, तो आज यह स्थिति न बनती। यह केवल नौ गांवों की नहीं, बल्कि पूरे जिले की समस्या है। अब समय आ गया है कि स्वास्थ्य विभाग सिर्फ तात्कालिक कदमों तक सीमित न रहे, बल्कि लंबी अवधि की ठोस रणनीति बनाए, जिसकी नियमित निगरानी हो और लापरवाह अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। तभी “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों का वास्तविक प्रभाव समाज में दिखेगा।