15 जून 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
International Desk: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साइप्रस दौरे को भारत की कूटनीतिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह दौरा 23 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस यात्रा है और इसे तुर्कीये को एक स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्कीये ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था और उसे हमले के लिए ड्रोन भी मुहैया कराए थे, जिससे भारत-तुर्कीये संबंधों में खटास आई थी। अब साइप्रस के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी को तुर्कीये के लिए एक चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है।
तुर्कीये और साइप्रस के बीच दशकों पुराना विवाद चल रहा है। 1974 में तुर्कीये ने साइप्रस के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लिया था, जिसे अब तक ‘उत्तरी साइप्रस’ कहा जाता है। साइप्रस की सरकार इसे अपना अवैध कब्जा मानती है और संयुक्त राष्ट्र भी इस मामले में हस्तक्षेप कर चुका है। तुर्कीये द्वारा साइप्रस के समुद्री क्षेत्र में ड्रिलिंग की कोशिशों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध झेलना पड़ा है। ऐसे में, भारत का साइप्रस के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाना तुर्कीये को एक मजबूत राजनीतिक संकेत देता है।
PM मोदी साइप्रस जाने वाले तीसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं। इससे पहले इंदिरा गांधी (1983) और अटल बिहारी वाजपेयी (2002) ने इस देश का दौरा किया था। हालांकि, भारत और साइप्रस के संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं, लेकिन इस बार का दौरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तुर्कीये-पाकिस्तान गठजोड़ के खिलाफ भारत की कूटनीतिक पहल का हिस्सा माना जा रहा है। साइप्रस के साथ रक्षा, व्यापार और ऊर्जा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा होने की उम्मीद है, जो भारत की भूमध्यसागरीय रणनीति को भी मजबूत करेगा।