10 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
Rashifal Desk: गुरु पूर्णिमा पर संत प्रेमानंद महाराज की सीख: गुरु चुनने से पहले इन बातों का जरूर रखें ध्यान आज गुरु पूर्णिमा है और देशभर में लोग अपने-अपने गुरु का ध्यान कर रहे हैं, उन्हें नमन कर रहे हैं। लेकिन जो लोग अभी तक गुरु नहीं बना पाए हैं और उचित गुरु की तलाश में हैं, उनके लिए वृंदावन के संत श्री प्रेमानंद महाराज ने कुछ जरूरी बातें बताई हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि गुरु बनाना कोई सामान्य फैसला नहीं, यह जीवन की दिशा तय करता है, इसलिए इसमें जल्दबाज़ी या प्रभाव में आकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।
गुरु चुनते समय क्या करें?
संत प्रेमानंद महाराज के अनुसार, सिर्फ किसी की प्रसिद्धि, भीड़ या प्रवचनों को सुनकर उन्हें गुरु बनाना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि गुरु वही बनाना चाहिए जिसकी संगत में शांति और आत्मिक सुख मिले। पहले उनकी संगत करें, उन्हें करीब से जानें। देखें कि उनके विचार, वाणी और आचरण में एकरूपता है या नहीं। अगर उनके साथ रहने से भगवद् भक्ति की भावना जागे, मन में स्थिरता और विश्वास आये, तभी उन्हें गुरु बनाएं।
गुरु के प्रति आंतरिक श्रद्धा जरूरी
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि गुरु वही होना चाहिए जिसे देखकर ऐसा लगे कि ये अपने हैं, पूर्वजन्म से जुड़ा कोई आत्मिक संबंध है। अगर उनके दर्शन या वचनों से मन को शांति मिले और भगवान की प्राप्ति की तीव्र इच्छा जगे, तभी गुरु बनाएं। और यदि कोई भी संदेह हो, मन बेचैन हो, तो ऐसे व्यक्ति को गुरु नहीं बनाना चाहिए।
भगवान को पहले गुरु मानें
उन्होंने सलाह दी कि किसी को भी गुरु बनाने से पहले भगवान को ही गुरु रूप में स्वीकार करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे ही आपको योग्य गुरु के रूप में प्राप्त हों। इससे मार्गदर्शन भी मिलेगा और संशय की स्थिति भी नहीं बनेगी।
दीक्षा लेने से पहले सावधानी जरूरी
संत प्रेमानंद महाराज ने दीक्षा को लेकर भी विशेष सावधानी बरतने की बात कही। उन्होंने कहा कि दीक्षा ज़रूरी तो है, लेकिन बिना समझे और जांचे इसे लेना सही नहीं। सालों तक उस गुरु के सत्संग में रहें, उनके व्यवहार, वातावरण और संगत का निरीक्षण करें। जब पूरी श्रद्धा और समर्पण हो जाए, तभी दीक्षा लें।
गुरु मंत्र का उद्देश्य स्पष्ट हो
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गुरु मंत्र तभी लें जब आपके भीतर भगवद् प्राप्ति की भावना प्रबल हो और आप गुरु की आज्ञा का पूरी निष्ठा से पालन करने को तैयार हों। अगर केवल दिखावे या बिना समर्पण के मंत्र लिया तो यह अपराध की श्रेणी में आ सकता है।
निष्कर्ष
गुरु बनाना जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का मार्ग है। संत प्रेमानंद महाराज की ये बातें उन सभी के लिए अमूल्य हैं जो सच्चे मार्गदर्शक की तलाश में हैं।
गुरु वही, जो जीवन को प्रभु से जोड़े – न कि भ्रमित करे।