“हम आज भी बंकरों में जीने को मजबूर हैं” — सरहदी इलाकों के लोगों का दर्द

14 मई, 2025 Fact Recorder

पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई के बाद भी सीमावर्ती इलाकों में डर का साया

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाते हुए पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच सहमति बनी और सीजफायर हुआ। हालांकि, सरहदी इलाकों में रहने वाले लोग अब भी दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं।

सीजफायर के बाद भी बिखरा पड़ा है खौफ
सीजफायर के कई दिन बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। गांवों में अभी भी मोर्टार के गोले और मिसाइलों के टुकड़े जमीन पर पड़े हैं। मंजाकोट सेक्टर के निवासी मोहम्मद फिरदौस ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बताया कि वे आज भी अपनी रातें बंकरों में गुजार रहे हैं। उन्होंने कहा, “बंकर बहुत कम हैं। अगर हमें फिर से गोलाबारी झेलनी पड़ी, तो हमारे पास बचाव का कोई तरीका नहीं होगा।”

“बस शांति चाहिए” — सीमावासियों की अपील
नौशेरा के रहने वाले चुन्नी लाल ने बताया कि 2021 के युद्धविराम समझौते के बाद पहली बार उन्होंने इतनी भारी गोलाबारी देखी है। वे कहते हैं, “हमें बस शांति चाहिए। हम अपने टूटे हुए घरों को दोबारा बनाना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए आर्थिक मदद जरूरी है।”

सरकार दे रही है मदद का भरोसा
मुख्य सचिव अटल डुल्लू ने गोलाबारी से प्रभावित गांवों का दौरा किया और बताया कि राजौरी में तीन लोग—including एक वरिष्ठ अधिकारी—मारे गए, और दर्जनों घरों को नुकसान हुआ है। कई विस्थापित लोग अपने घर लौट आए हैं, लेकिन हजारों अब भी राहत शिविरों में रह रहे हैं।

सेना अब भी खेतों और गलियों में दबे जिंदा बमों को नियंत्रित विस्फोटों से निष्क्रिय कर रही है। डुल्लू ने आश्वासन दिया कि मृतकों के परिवारों को मुआवजा, घायलों को बेहतर इलाज और विस्थापितों को पुनर्वास की पूरी सहायता दी जाएगी।