आज का पंचांग 6 सितंबर 2025: भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी, देखें शुभ मुहूर्त और राहुकाल समय

आज का पंचांग 6 सितंबर 2025: भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी, देखें शुभ मुहूर्त और राहुकाल समय

06 सितम्बर 2025 फैक्ट रिकॉर्डर

Rashifal Desk: गणेश विसर्जन 2025: जानें आज का पंचांग, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
आज यानी 6 सितंबर 2025 को देशभर में गणेश विसर्जन का पर्व मनाया जाएगा, जो गणेश चतुर्थी उत्सव का अंतिम चरण होता है। इस दिन भक्त गणेश जी की मूर्ति को जल में विसर्जित करते हैं और सुख, समृद्धि एवं खुशहाली की कामना करते हैं। यह दिन भक्ति, प्रेम और आस्था का प्रतीक माना जाता है।

आज का पंचांग (6 सितंबर 2025)
तिथि: भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (समाप्त: देर रात 1:41 बजे)
योग: अतिगंड (समाप्त: सुबह 11:52 बजे)

करण:
गरज: दोपहर 2:31 बजे तक
वणिजा: देर रात 1:41 बजे तक
वार: शनिवार
सूर्योदय: सुबह 6:02 बजे
सूर्यास्त: शाम 6:37 बजे
चंद्रोदय: शाम 5:52 बजे
चंद्रास्त: प्रातः 5:19 बजे (7 सितंबर)
सूर्य राशि: सिंह
चंद्र राशि: मकर

शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: 11:54 बजे से 12:44 बजे तक
अमृत काल: 12:50 बजे से 2:23 बजे तक

अशुभ समय
राहुकाल: 9:10 बजे से 10:45 बजे तक
गुलिकाल: 6:02 बजे से 7:36 बजे तक
यमगंड: 1:54 बजे से 3:28 बजे तक

आज का नक्षत्र: धनिष्ठा (रात्रि 10:55 बजे तक)
विशेषताएं: आत्मविश्वासी, शक्तिशाली, धैर्यवान, परिश्रमी, प्रसिद्धि, सौंदर्य, धन, कलात्मक प्रतिभा, स्वतंत्र स्वभाव, विश्वसनीय और दानशील।
नक्षत्र स्वामी: मंगल
राशि स्वामी: शनि
देवता: आठ वसु (भौतिक समृद्धि के देवता)
प्रतीक: ढोल या बांसुरी

आज का व्रत और त्योहार: गणेश विसर्जन
गणेश जी को बाधा नाशक और शुभारंभ के देवता माना जाता है। उनकी विदाई के समय भक्त उन्हें विशेष भाव और भक्ति के साथ जल में विसर्जित करते हैं। यह कार्य जीवन से दुख, असफलता और बुराइयों को दूर करने का प्रतीक माना जाता है।

चतुर्दशी तिथि अवधि:
आरंभ: 3:12 बजे (ब्रह्म मुहूर्त)
समाप्त: 1:41 बजे (7 सितंबर)
गणेश विसर्जन पूजा विधि
प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
घर या मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
पूजा स्थल को फूल, दीपक और धूप से सजाएं।
कलश स्थापना कर भगवान गणेश का स्मरण करें।
गणेश जी को जल, दूध या पंचामृत से स्नान कराएं।
हल्दी, सिंदूर, फूल, रोली और मोदक अर्पित करें।
भजन-कीर्तन करें और “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र का जप करें।
श्रद्धा और भक्ति के साथ मूर्ति को जल में विसर्जित करें।
दिनभर उपवास या फलाहार रखें और विसर्जन के बाद प्रसाद ग्रहण करें।