14 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
Rashifal Desk: सावन सोमवार: जानिए व्रत की पूजा-विधि, महत्व और व्रत में खाए जाने वाले आहार हर साल की तरह इस बार भी सावन मास शुभ योगों के साथ आरंभ हो चुका है। इस वर्ष शिव भक्तों को सावन में कुल चार सोमवार प्राप्त होंगे, जिनमें पहला सावन सोमवार आज, 14 जुलाई 2025 को पड़ रहा है। इस पवित्र दिन भगवान शिव की उपासना करने से साधक को तनाव, रोग और कर्ज से मुक्ति मिलती है। साथ ही, जीवन में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
🌿 सावन सोमवार व्रत की पूजा-विधि
प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मंदिर जाकर या घर पर शिवलिंग स्थापित कर श्रद्धा भाव से पूजा करें।
शिवलिंग का अभिषेक करें – जल, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से।
भगवान शिव को अर्पित करें – बेलपत्र, धतूरा, आक, अक्षत, भस्म, और सफेद पुष्प।
सफेद मिठाई का भोग लगाएं और तीन बार ताली बजाकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
🍎 व्रत में क्या खाएं?
सावन व्रत के दौरान ऐसा आहार लें जो हल्का हो पर ऊर्जा प्रदान करे:
फलों का सलाद – शरीर को ठंडक और ऊर्जा देता है।
राजगिरा पराठा – स्वादिष्ट और पचने में आसान, जिसे दही या चटनी के साथ खाया जा सकता है।
साबूदाना, मखाना, अरारोट और कुट्टू – इनसे बना सकते हैं पराठा, खिचड़ी या हलवा।
✅ व्रत में ध्यान रखने योग्य बातें:
खूब पानी पिएं, ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे।
हल्का और सात्विक भोजन करें – मन और शरीर दोनों को शांति मिलेगी।
फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ लें ताकि पाचन सही रहे।
व्रत को केवल शारीरिक नहीं, आध्यात्मिक तप की तरह लें – ध्यान, भजन और शिव नाम का जाप करें।
इस सावन सोमवार, शिवभक्ति में लीन होकर अपने जीवन को शुद्ध, शांत और संतुलित बनाएं। ॐ नमः शिवाय 🙏
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शिव जी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
इन मंत्रों के साथ करें जलाभिषेक
ॐ नम: शिवाय
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः
ॐ शर्वाय नम:।
ॐ विरूपाक्षाय नम:।
ॐ विश्वरूपिणे नम:।
ॐ कपर्दिने नम:।
ॐ भैरवाय नम:।
ॐ शूलपाणये नम:।
ॐ ईशानाय नम:।
ॐ महेश्वराय नम:।
ॐ नमो नीलकण्ठाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ पशुपतये नम:।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।शिव चालीसा।। Shiv Chalisa
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥