22 अगस्त 2025 फैक्ट रिकॉर्डर
International Desk: लिपुलेख विवाद: नेपाल की आपत्ति पर भारत का करारा जवाब, जानिए क्यों अहम है यह दर्रा भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने बुधवार को नेपाल की उन आपत्तियों को खारिज कर दिया, जिनमें उसने लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन व्यापार को लेकर विरोध जताया था। नेपाल का कहना है कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा उसके अविभाज्य हिस्से हैं, जिन्हें उसने आधिकारिक नक्शे और संविधान में शामिल किया है।
MEA प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया,
“लिपुलेख दर्रे के जरिए भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार 1954 से जारी है। यह एक ऐतिहासिक रूप से स्थापित मार्ग है। नेपाल के क्षेत्रीय दावे न तो न्यायसंगत हैं और न ही तथ्यों पर आधारित। भारत हमेशा सीमा मुद्दों पर नेपाल से बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन इस तरह की मनगढ़ंत आपत्तियां स्वीकार्य नहीं।”
क्या है लिपुलेख दर्रा और क्यों है अहम?
लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में, भारत-नेपाल-चीन त्रिकोणीय सीमा पर स्थित है। समुद्र तल से करीब 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा भारत के लिए धार्मिक, सामरिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है:
धार्मिक महत्व: यहीं से कैलाश मानसरोवर और तिब्बत के तकलाकोट जाने का मार्ग है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों के लिए यह क्षेत्र पवित्र माना जाता है।
सामरिक महत्व: यह मार्ग चीन सीमा तक तेजी से पहुंचने और सैन्य लॉजिस्टिक्स के लिए अहम है।
व्यापारिक महत्व: 1954 से भारत-तिब्बत व्यापार का प्रमुख केंद्र।
नेपाल क्यों जता रहा आपत्ति?
नेपाल का दावा है कि महाकाली (काली) नदी के पूर्व में स्थित कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख उसका हिस्सा हैं।
1814-16 में हुए एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद सुगौली संधि में यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन गया।
स्वतंत्रता के बाद से भारत इस क्षेत्र को अपने उत्तराखंड का हिस्सा मानता है।
1962 भारत-चीन युद्ध के बाद यहां आईटीबीपी की तैनाती हुई और भारत ने इसे रणनीतिक रूप से विकसित किया।
2016 और 2020 में नेपाल ने तब भी विरोध जताया जब भारत ने यहां सड़क निर्माण और व्यापार बढ़ाने की पहल की।
भारत का रुख क्या है?
भारत का कहना है कि:
लिपुलेख से व्यापार 1954 से होता आ रहा है।
नेपाल की आपत्तियां ऐतिहासिक तथ्यों और समझौतों के विपरीत हैं।
सीमा विवाद का समाधान केवल वार्ता और कूटनीति से होगा।
निष्कर्ष:
लिपुलेख सिर्फ एक व्यापार मार्ग नहीं, बल्कि भारत के लिए सुरक्षा, धार्मिक आस्था और सामरिक हितों का केंद्र है। नेपाल की हालिया आपत्तियां इस लंबे चले आ रहे विवाद को फिर से चर्चा में ले आई हैं, लेकिन भारत का रुख साफ है—ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक रूप से यह भारत का हिस्सा है और रहेगा।