05 अगस्त 2025 फैक्ट रिकॉर्डर
National Desk: कांवड़ यात्रा: एक आध्यात्मिक परंपरा, जो सम्मान और सहिष्णुता की पात्र है भारत की सबसे प्रतिष्ठित और जन-संपृक्त तीर्थ यात्राओं में से एक — कांवड़ यात्रा — हर वर्ष श्रावण माह में लाखों शिव भक्तों द्वारा आस्था और समर्पण के साथ पूरी की जाती है। यह कोई साधारण यात्रा नहीं, बल्कि एक आत्मिक साधना है, जिसमें कांवड़िए नंगे पांव, कई बार प्रतिकूल मौसम में, सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। उनका उद्देश्य एक ही होता है — गंगा से पवित्र जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करना।
यह सदियों पुरानी परंपरा भक्तों की व्यक्तिगत श्रद्धा, अनुशासन और आध्यात्मिक दृढ़ता का प्रतीक है। लेकिन हाल के वर्षों में यह यात्रा — जो वास्तव में भारतीय अध्यात्म और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक होनी चाहिए — कुछ मौकों पर विवादों और गलतफहमियों का शिकार बन गई है।
यह ज़रूरी है कि समाज कांवड़ यात्रा को उसके वास्तविक स्वरूप में देखे — एक शांतिपूर्ण और धार्मिक परंपरा, जो किसी के लिए भी खतरा नहीं है। हमारे जैसे विविधतापूर्ण देश में, धार्मिक सहिष्णुता कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्य कर्तव्य है। इस यात्रा को किसी विशेष समुदाय या राजनीति से जोड़कर देखना न केवल अनुचित है, बल्कि इसकी पवित्रता के साथ भी अन्याय है।
कांवड़िए किसी संस्था या संगठन के प्रतिनिधि नहीं होते। वे आम लोग होते हैं — छात्र, मजदूर, किसान, प्रोफेशनल, गृहस्थ — जो अपने व्यक्तिगत समय से कुछ दिन निकालकर आध्यात्मिक शांति की तलाश में निकलते हैं। उनकी भक्ति सच्ची है, और उस भक्ति में जो कष्ट, तपस्या और अनुशासन निहित है, वह आधुनिक समय में दुर्लभ है। यह आस्था प्रशंसा के योग्य है, आलोचना के नहीं।
यह भी सच है कि कभी-कभी कुछ असामाजिक तत्व इस भीड़ में शामिल होकर अनुशासन भंग कर सकते हैं। लेकिन किसी एक की गलती की कीमत पूरी आस्था को नहीं चुकानी चाहिए। मीडिया और सोशल मीडिया को भी यह ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए कि वे चुनिंदा घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर न दिखाएं, जिससे भ्रम और तनाव की स्थिति उत्पन्न हो।
सरकार और प्रशासन भी इस यात्रा को सुचारू रूप से संचालित करने में जुटे रहते हैं। यातायात प्रबंधन, स्वच्छता, सुरक्षा और चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था में अनेक स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय समुदाय सहयोग करते हैं। यह भारत के सामाजिक सहयोग और सह-अस्तित्व की एक प्रेरणादायक मिसाल है।
फिर भी, कुछ क्षेत्रों में कांवड़ यात्रा को संदेह या असहजता की दृष्टि से देखा जाता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। जैसे हर समुदाय को अपने धार्मिक आयोजनों के लिए स्थान और सम्मान की अपेक्षा होती है, वैसे ही कांवड़ यात्रा भी समान सम्मान की अधिकारिणी है।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ रमज़ान के रोज़े, ईसाई धर्म के जुलूस, गुरुपर्व के आयोजन खुले दिल से स्वीकार किए जाते हैं। ऐसे में, कुछ दिनों की कांवड़ यात्रा को भी उसी उदारता और सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए। यह प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं, बल्कि आपसी सम्मान और करुणा का प्रश्न है।
सभी तीर्थयात्रियों को निश्चित ही क़ानून का पालन करना चाहिए और उकसावे से बचना चाहिए, लेकिन समाज के अन्य वर्गों को भी संयम, समझ और समर्थन की ज़रूरत है। मीडिया, प्रशासन और नागरिक समाज को मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जहाँ धर्म आस्था का विषय हो, संघर्ष का नहीं।
कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, एक संदेश है — भक्ति, सहिष्णुता और एकता का। जब दुनिया विभाजन की ओर बढ़ रही है, तब यह यात्रा हमें याद दिलाती है कि विविधता में भी एकता संभव है — जब तक हम एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते रहें।
आइए, हम सब मिलकर इस पवित्र परंपरा की गरिमा बनाए रखें। कांवड़ियों की आस्था को एक अवसर की तरह देखें — सांस्कृतिक सौहार्द को मजबूत करने का अवसर। उनकी भक्ति किसी के लिए खतरा नहीं है, बल्कि हमारे साझा मूल्यों की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। यही भारत की आत्मा है — यही उसका भविष्य भी।