18 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
National Desk: पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अनिरुद्धाचार्य महाराज के पुराने वायरल वीडियो को लेकर शुरू हुई बहस अब और तेज हो गई है। जौनपुर की मछलीशहर से समाजवादी पार्टी की सांसद प्रिया सरोज इस मुद्दे पर खुलकर सामने आई हैं। उन्होंने अनिरुद्धाचार्य महाराज द्वारा अखिलेश यादव पर की गई हालिया टिप्पणी पर नाराजगी जताते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर तीखा हमला बोला।
प्रिया सरोज ने अपनी पोस्ट में लिखा, “जब एक बाबा कृष्ण जी का नाम बताने में असफल हो जाता है तो अपनी छवि सुधारने के लिए वे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम हिंदू-मुस्लिम से जोड़कर देश और प्रदेश का माहौल खराब करते हैं। यही सिखाते हैं ये अपने प्रवचनों में?” उन्होंने इस पोस्ट के साथ अनिरुद्धाचार्य की तस्वीर भी साझा की। उनके बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है—कुछ लोगों ने इसे सच्चाई और साहस की आवाज बताया, तो कुछ ने इसे संत समाज के खिलाफ टिप्पणी करार दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सांसद प्रिया सरोज की यह पोस्ट अनिरुद्धाचार्य पर सीधा निशाना है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि धार्मिक मंचों का इस्तेमाल अब समाज को बांटने के लिए किया जा रहा है, जो भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक समरसता के खिलाफ है। यह टिप्पणी उस वक्त आई है जब अनिरुद्धाचार्य और अखिलेश यादव के बीच का पुराना वीडियो और उस पर हुई टिप्पणियां राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
दरअसल, मामला एक पुराने वीडियो से शुरू हुआ था जिसमें अखिलेश यादव, अनिरुद्धाचार्य महाराज से सवाल करते हैं कि मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को सबसे पहले किस नाम से पुकारा था। इस पर अनिरुद्धाचार्य ने जवाब दिया—”कन्हैया”। इसके बाद अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा, “बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएं… अब यहीं से हमारा और आपका रास्ता अलग हो जाता है।” साथ ही, उन्होंने अनिरुद्धाचार्य से ‘शूद्र’ शब्द का प्रयोग न करने की सलाह भी दी थी।
इस वीडियो के जवाब में 16 जुलाई को अनिरुद्धाचार्य महाराज ने बिना अखिलेश का नाम लिए पलटवार किया। अपने प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री मुझसे कहते हैं कि तुम्हारा और हमारा रास्ता अलग। सिर्फ इसलिए कि मैंने उनके सवाल का मनमाफिक उत्तर नहीं दिया। लेकिन जब वे मुसलमानों से बात करते हैं तो नहीं कहते कि तुम्हारा रास्ता अलग। उनके लिए तो वही रास्ता होता है।”
इस बयान ने एक बार फिर राजनीति और धर्म के बीच के तनाव को हवा दे दी है। अब यह मुद्दा धार्मिक प्रवचनों की भूमिका, राजनीतिक हस्तक्षेप, और समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण पर बहस का केंद्र बन गया है।