26 Feb 2025: Fact Reocrder
Mutual Funds 2025: म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले भी इस समय डरे हुए हैं, क्योंकि शेयर बाजार की गिरावट ने उनका रिटर्न भी प्रभावित किया है। इस बीच, विदेशी फंड मैनेजरों की तरफ से बिकवाली लगातार जारी है।
शेयर बाजार के पिछले कुछ समय के प्रदर्शन ने म्यूचुअल फंड का गणित भी बिगाड़ दिया है। उनका रिटर्न प्रभावित हुआ है और निवेशकों की चिंता बढ़ी है। म्यूचुअल फंड का रिटर्न कैसा रहेगा, इसमें विदेशी फंड मैनेजरों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि वही अपने ग्राहकों की ओर से निवेश करते हैं। एक आंकड़े के अनुसार, फॉरेन फंड मैनेजरों ने इस साल अब तक 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के भारतीय शेयर बेचे डाले हैं।
लगातार बढ़ रहा आंकड़ा
पिछले साल अक्टूबर से अब तक विदेशी फंड मैनेजर 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री कर चुके हैं, जो 2023 में रिकॉर्ड 1.7 लाख करोड़ रुपये के नेट इनफ्लो से अधिक है। बता दें कि म्यूचुअल फंड कंपनियां स्टॉक सहित कई दूसरे इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करती हैं, ऐसे में शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव का उन पर सीधा असर पड़ता है। अब जब मार्केट लगातार कमजोर हो रहा है, तो म्यूचुअल फंड का रिटर्न भी प्रभावित हुआ है।
ये है प्रमुख वजह
एक्सपर्ट्स का कहना है कि न्यूयॉर्क और सिंगापुर जैसी जगहों से ऑपरेट करने वाले विदेशी फंड मैनेजरों को फिलहाल भारत उतना आकर्षक नहीं लग रहा है। इसकी वजह कमजोर अर्निंग ग्रोथ और डिमांड के साथ-साथ डॉलर के मुकाबले कमजोर होते रुपये से उनके रिटर्न क प्रभावित होना है। इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी बाजार निवेशकों को ज्यादा आकर्षित कर रहा है। ऐसे में फंड मैनेजरों को अपने क्लाइंट के अनुरोध पर भारत जैसे बाजारों में बिकवाली करनी पड़ रही है।
यूएस जा रहा पैसा
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के सीईओ प्रतीक गुप्ता ने TOI से कहा कि भले ही भारतीय बाजार आज कुछ समय पहले जितना आकर्षक बन जाए, तब भी विदेशी फंड्स के पास निवेश करने के लिए पैसे नहीं होंगे, क्योंकि पैसा वापस अमेरिका जा रहा है। उन्होंने कहा कि उभरते बाजारों के फंड मैनेजरों को साल की दूसरी छमाही में निवेश की उम्मीद है, लेकिन धीमी वृद्धि और अपेक्षाकृत महंगे वैल्यूएशन को देखते हुए भारत शायद उनकी पहली पसंद न हो।
जोखिम नहीं लेना चाहते
एक्सपर्ट्स का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत के बाद विदेशी फंड की बिकवाली तेज हुई है, जिससे डॉलर और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में उछाल आया। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार का कहना है कि जब अमेरिका में 10 साल के बॉन्ड की यील्ड 4.5% से ऊपर हो, तो विदेशी फंड को उभरते बाजारों में निवेश करने का जोखिम उठाने की जरूरत नहीं है। खासकर तब जब उनका वैल्यूएशन अधिक हो, जैसा कि भारत के मामले में है।
कब तक वापसी संभव?
पीएल कैपिटल के सीईओ (वेल्थ) इंदरबीर सिंह जॉली के अनुसार, 6-7% से अधिक GDP ग्रोथ कॉर्पोरेट अर्निंग को सपोर्ट करेगी और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करेगी। उनका यह भी कहना है कि रुपये की स्थिरता, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और निवेशकों के अनुकूल नीतियां भी तस्वीर को पलट सकती हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजार में वापसी में अभी वक्त लगेगा।