धर्मशाला में स्थित ऐतिहासिक डल झील।
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित ऐतिहासिक डल झील आज गंभीर संकट में है। मैक्लोडगंज के नड्डी क्षेत्र में स्थित यह झील धार्मिक और पर्यटन दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जिला प्रशासन ने झील के सौंदर्यीकरण के लिए 15 लाख रुपए का बजट स्वीकृत किया था। पहले
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मुख्य सड़क क्षतिग्रस्त हो चुकी
भगवान शिव को समर्पित इस स्थल पर हर साल भादों के महीने में डल मेले का आयोजन होता है। इसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। झील के पास की मुख्य सड़क क्षतिग्रस्त हो चुकी है। दरारें और टूटी दीवारें बड़ी दुर्घटना का संकेत दे रही हैं। झील का जलस्तर लगातार घट रहा है। पहले जहां पानी लहराता था, अब वहां कीचड़ और टूटे पत्थर दिखाई देते हैं। इंटरनेट और गाइड बुक्स में दिखाए दृश्य वास्तविकता से बिल्कुल अलग हैं।
इस कारण पर्यटक निराश होकर लौट रहे हैं।

झील में बनी कीचड़ की स्थिति।
जलवायु परिवर्तन दोनों जिम्मेदार
डल झील की इस स्थिति के लिए प्रशासनिक लापरवाही और जलवायु परिवर्तन दोनों जिम्मेदार हैं। क्षेत्र में कम होती वर्षा, ग्लेशियरों का पिघलना और भू-जल स्रोतों की कमी ने स्थिति को और बिगाड़ा है। समय पर उचित योजना और देखरेख से इस स्थिति से बचा जा सकता था।
प्रकृति अब इंसान की लापरवाही से नाराज
स्थानीय निवासी ताशी और लोबसांग दावा ने मीडिया से बातचीत में अपनी पीड़ा व्यक्त की। ताशी का कहना है यह झील हमारी सांस्कृतिक पहचान थी। यहां की मिट्टी से हमारी यादें जुड़ी हैं। आज यह हालत देखकर मन दुखी हो जाता है। वहीं लोबसांग दावा ने कहा प्रकृति अब इंसान की लापरवाही से नाराज़ है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो ऐसी और कई झीलें खत्म हो जाएंगी। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन पर निर्भर करता है।

सूखी पड़ी डल झील का दृश्य।
होटल उद्योग और गाइड सेवाओं पर असर
डल झील जैसे आकर्षण जब इस प्रकार उपेक्षित हो जाते हैं, तो उसका सीधा असर स्थानीय व्यापार, होटल उद्योग और गाइड सेवाओं पर पड़ता है। अब तक प्रशासन की ओर से इस कार्य की देरी या रुकावट पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। स्थानीय लोगों की मांग है कि संबंधित विभागों को तुरंत हस्तक्षेप कर कार्य को पुनः शुरू करवाना चाहिए और क्षेत्र की मरम्मत सुनिश्चित करनी चाहिए।
सुनियोजित प्रयास और सतत निगरानी
डल झील को फिर से उसी स्वरूप में लाया जा सकता है, जिसमें वह कभी एक शांत, सुंदर और जीवंत झील थी। आवश्यकता केवल दृढ़ इच्छाशक्ति, सुनियोजित प्रयास और सतत निगरानी की है। यदि समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो यह सिर्फ एक झील नहीं, एक विरासत को खोने जैसा होगा।