हार्ट अटैक: सालाना 7 लाख मौ/तें, सिर्फ 7% को CPR का ज्ञान; 98% भारतीय अनजान

हार्ट अटैक: सालाना 7 लाख मौ/तें, सिर्फ 7% को CPR का ज्ञान; 98% भारतीय अनजान

14 अक्टूबर 2025 फैक्ट रिकॉर्डर

Health Desk:  हार्ट अटैक से सालाना सात लाख मौ/तें, 98% भारतीयों को CPR की जानकारी नहीं
भारत में हर साल करीब सात लाख लोग अचानक हृदयगति रुकने (कार्डियक अरेस्ट) से अपनी जान गंवाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इनमें से अधिकांश की जान साधारण तकनीक कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) से बचाई जा सकती है। अगर हृदय रुकने के पहले पांच मिनट में CPR दिया जाए तो व्यक्ति की बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

लेकिन भारत में केवल 7% मरीजों को समय पर CPR मिल पाता है, और लगभग 98% भारतीयों को CPR देने का तरीका ही नहीं पता। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के वरिष्ठ डॉक्टर अंबुज राय के अनुसार, हर मिनट की देरी मरीज की बचने की संभावना को लगभग 10% तक घटा देती है।
CPR का सरल तरीका, जिसे हैंड्स-ओनली CPR कहा जाता है, सिर्फ दोनों हाथों से छाती के बीच तेज और समान दबाव देना होता है, ताकि मस्तिष्क और हृदय तक रक्त का प्रवाह बना रहे। इसे तब तक जारी रखना चाहिए जब तक चिकित्सकीय मदद न पहुंचे।

शहरी और ग्रामीण भारत में स्थिति गंभीर
अचानक हृदय रुकने की घटनाएं अब केवल शहरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि गांवों में भी बढ़ रही हैं। खराब खानपान, तनाव, प्रदूषण और निष्क्रिय जीवनशैली इसे और गंभीर बना रही है। देश में लगभग 70% कार्डियक अरेस्ट अस्पतालों के बाहर होते हैं, जहां एंबुलेंस आने में औसतन 10–15 मिनट लगते हैं।

बढ़ती उम्र और बढ़ता जोखिम
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ फेलो केएस उपलभद गोपाल का कहना है कि हृदय रोग भारत में मौत का प्रमुख कारण है और आने वाले वर्षों में यह संकट और बढ़ेगा। 2030 तक 60 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी 19.3 करोड़ पार कर जाएगी। ऐसे में अचानक हृदय रुकना, बेहोशी या हार्ट अटैक की घटनाओं में इज़ाफा होगा।

सीपीआर प्रशिक्षण और आपात प्रतिक्रिया प्रणाली की कमी
भारत के अधिकांश स्कूल, दफ्तर और सार्वजनिक स्थल आपात प्रतिक्रिया तंत्र से लैस नहीं हैं। पाठ्यक्रम में CPR का उल्लेख है, लेकिन व्यावहारिक प्रशिक्षण लगभग नहीं के बराबर है। नॉर्वे और सिंगापुर जैसे देशों में स्कूली बच्चों और ड्राइविंग लाइसेंसधारकों के लिए CPR प्रशिक्षण अनिवार्य है।

शहरों में कुछ अस्पताल और एनजीओ CPR वर्कशॉप चला रहे हैं, लेकिन ग्रामीण भारत में इस सुविधा का अभाव गंभीर चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि सीपीआर और ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डिफिब्रिलेटर (AED) जैसी तकनीकें जीवनरक्षक साबित हो सकती हैं, लेकिन देश में इनकी पहुंच अभी बेहद सीमित है।