07 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
Politics Desk: बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची पर सियासत गरमाई, विपक्ष की बैठक टली, चुनाव आयोग का स्पष्ट संदेश बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की गहन जांच को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से 2 जुलाई को बैठक की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस की ओर से बताए गए दलों में से किसी ने भी आधिकारिक रूप से बैठक में शामिल होने की पुष्टि नहीं की। इसी वजह से चुनाव आयोग ने बैठक को फिलहाल स्थगित कर दिया है।
विपक्षी दलों की पुष्टि न मिलने पर बैठक स्थगित
30 जून को कांग्रेस के एक कानूनी प्रतिनिधि ने आयोग को ई-मेल भेजकर 2 जुलाई को बैठक आयोजित करने का अनुरोध किया था। उन्होंने खुद को विपक्षी गठबंधन के कई दलों का प्रतिनिधि बताया था। आयोग ने संबंधित दलों से भागीदारी की पुष्टि मांगी, लेकिन किसी भी पार्टी ने स्पष्ट जवाब नहीं दिया, जिसके चलते बैठक आगे नहीं बढ़ सकी।
चुनाव आयोग का स्पष्ट रुख – “जहां रहते हैं, वहीं करें पंजीकरण”
मंगलवार को चुनाव आयोग ने मतदाता सूची संशोधन को लेकर एक अहम बयान जारी किया। आयोग ने साफ किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत नागरिक केवल उसी विधानसभा क्षेत्र में वोट देने के पात्र हैं, जहां वे सामान्य रूप से निवास करते हैं।
आयोग के अनुसार, जो लोग प्रवास के बाद भी अपने पुराने पते के मतदाता कार्ड अपने पास रखे हुए हैं, वे कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। ऐसे मामलों की पहचान करना इस समीक्षा अभियान का मुख्य उद्देश्य है। आयोग ने दो टूक कहा कि मतदाता पंजीकरण उसी क्षेत्र में होना चाहिए जहां व्यक्ति वर्तमान में रह रहा हो, न कि अपने मूल निवास स्थान पर।
विपक्षी दलों का विरोध और आयोग की प्रक्रिया
चुनाव आयोग की ओर से बिहार में मतदाता सूची के विशेष संशोधन अभियान की घोषणा के बाद से विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को आशंका है कि इस प्रक्रिया के बहाने बड़े पैमाने पर नाम हटाए जा सकते हैं। इसी आशंका को लेकर विपक्ष आयोग से अपनी बात रखना चाहता था, लेकिन बैठक की तैयारी अधूरी रह गई।
जब तक सभी विपक्षी दलों की ओर से बैठक में शामिल होने की पुष्टि नहीं होती, आयोग किसी नई तारीख की घोषणा नहीं करेगा। आयोग ने यह भी साफ किया है कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और कानून के दायरे में रहकर ही संचालित की जा रही है।
यह मामला अब सिर्फ मतदाता सूची तक सीमित नहीं रहा, बल्कि चुनावी राजनीति और विश्वसनीयता के सवाल के रूप में उभर रहा है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और तूल पकड़ सकता है।