15 सितंबर 2025 फैक्ट रिकॉर्डर
Health Desk: हर साल 21 सितंबर को विश्व अल्ज़ाइमर दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य इस गंभीर बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है। अल्ज़ाइमर एक जटिल रोग है, जो धीरे-धीरे दिमाग की याददाश्त और कार्यक्षमता को कमजोर कर देता है। इसकी वजह से न सिर्फ मरीज बल्कि उनके परिवार को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दुर्भाग्य से, इस बीमारी को लेकर समाज में कई तरह की गलतफहमियां और मिथक प्रचलित हैं। इन पर विश्वास करना मरीज और उनके देखभाल करने वालों दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। आइए जानते हैं अल्ज़ाइमर से जुड़ी कुछ आम धारणाओं और उनके पीछे की सच्चाई:
मिथक 1: अल्ज़ाइमर केवल बुजुर्गों को होता है
सच: उम्र बढ़ना अल्ज़ाइमर का बड़ा कारण है, लेकिन यह सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं है। “यंग-ऑनसेट अल्ज़ाइमर” 30, 40 या 50 साल के लोगों को भी हो सकता है। हालांकि ये मामले दुर्लभ हैं।
मिथक 2: अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया एक ही हैं
सच: डिमेंशिया एक व्यापक शब्द है, जो सोचने-समझने और याददाश्त की क्षमताओं में गिरावट को दर्शाता है। अल्ज़ाइमर डिमेंशिया का सबसे आम कारण है, लेकिन हर डिमेंशिया रोगी को अल्ज़ाइमर नहीं होता।
मिथक 3: अल्ज़ाइमर का कोई इलाज नहीं है, इसलिए कोई उम्मीद नहीं है
सच: फिलहाल इसका पूर्ण इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन दवाओं, थेरेपी, मानसिक व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली से इसके लक्षणों को नियंत्रित और प्रगति को धीमा किया जा सकता है।
मिथक 4: यह सिर्फ याददाश्त खोने की बीमारी है
सच: अल्ज़ाइमर केवल भूलने तक सीमित नहीं है। यह सोचने, तर्क करने, निर्णय लेने, भाषा और व्यवहार पर भी असर डालता है। गंभीर स्थिति में मरीज साधारण काम भी नहीं कर पाता और बोलने या निगलने में दिक़्क़त हो सकती है।
👉 अल्ज़ाइमर को सही तरीके से समझना बेहद ज़रूरी है। अफवाहों पर भरोसा करने के बजाय विशेषज्ञ की सलाह लें और मरीज को उचित देखभाल व सहारा दें।
नोट: यह जानकारी चिकित्सा रिपोर्टों और शोध अध्ययनों पर आधारित है।