31 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर
Himachal Desk: हिमाचल प्रदेश का प्रतिष्ठित सेब उद्योग जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ता जा रहा है। पिछले 15 वर्षों में राज्य का सेब कारोबार 5,000 करोड़ रुपये से गिरकर 3,500 करोड़ रुपये तक सिमट गया है, जिससे 1,500 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ है। चार से छह हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रॉयल डिलीशियस जैसी प्रीमियम किस्मों का उत्पादन लगातार घट रहा है, जबकि फलों की गुणवत्ता में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। बागवानों के लिए मुश्किलें और बढ़ गई हैं क्योंकि उत्पादन लागत 800 रुपये प्रति कार्टन तक पहुंच गई है, जबकि बाजार भाव इस अनुपात में नहीं बढ़े हैं।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ डॉ. सौम्य दत्ता के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र में ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव देश के अन्य हिस्सों की तुलना में दोगुना तेजी से हो रहा है। स्नो लाइन के ऊपर खिसकने से वनस्पतियों का क्षेत्र 2,000 फीट तक ऊपर चला गया है, जिसका सेब उत्पादन पर सीधा असर पड़ा है। 2010 में राज्य ने 5.11 करोड़ पेटी का रिकॉर्ड उत्पादन किया था, लेकिन अब स्थिति बदतर होती जा रही है। वर्तमान में 1.16 लाख हेक्टेयर में फैले सेब के बागानों में से 70% उत्पादन अकेले शिमला जिले में होता है।
बागवान कुलदीप कांत शर्मा बताते हैं कि विदेश से मंगाई गई नई किस्में भी रॉयल डिलीशियस के स्वाद और गुणवत्ता का मुकाबला नहीं कर पा रही हैं। निर्यात की स्थिति और भी खराब है – पड़ोसी देशों को केवल नाममात्र का ही निर्यात हो पाता है, और अदाणी फ्रेश जैसी बड़ी कंपनियां भी केवल 5% उत्पादन ही खरीद पाती हैं। विशेषज्ञों की चेतावनी है कि यदि जलवायु परिवर्तन की यही रफ्तार जारी रही तो हिमाचल का यह प्रतिष्ठित उद्योग और भी गहरे संकट में फंस सकता है, जिससे लाखों बागवानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी।












