कोरोना के बाद अब नई ‘साइलेंट महामारी’ ने बढ़ाई चिंता, युवा और बुजुर्ग दोनों इसका शिकार

07 जुलाई 2025 फैक्टर रिकॉर्डर

Health Desk: कोरोना के बाद नई ‘साइलेंट महामारी’ अकेलापन: युवा-बुजुर्ग सभी हो रहे प्रभावित                  दुनियाभर ने हाल के वर्षों में कोरोना जैसी घातक महामारी का सामना किया, जिसने स्वास्थ्य सेवाओं और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। हालांकि कोरोना महामारी के बाद अब एक नई ‘साइलेंट महामारी’ यानी अकेलेपन ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों और वैश्विक संगठनों की चिंता बढ़ा दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया का हर छठा व्यक्ति अकेलापन झेल रहा है, जो अब एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है।

अकेलापन: एक छुपा हुआ खतरा
अकेलापन का मतलब है सामाजिक अलगाव और बातचीत के अभाव में मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव। अकेलेपन के कारण न केवल मानसिक तनाव और अवसाद बढ़ता है, बल्कि यह हृदय रोग, स्ट्रोक, डिमेंशिया और अन्य गंभीर बीमारियों का जोखिम भी बढ़ाता है। WHO के अनुसार अकेलापन हर घंटे करीब सौ लोगों की जान ले रहा है, जो इसे कोरोना जैसी महामारी के बाद एक नया स्वास्थ्य संकट बनाता है।

गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य खतरा
डब्ल्यूएचओ ने अकेलेपन को ‘गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य खतरा’ घोषित किया है। अमेरिकी विशेषज्ञों के अनुसार अकेलेपन के दुष्प्रभाव रोजाना 15 सिगरेट पीने के बराबर हैं। कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन, सामाजिक दूरी और आर्थिक दबावों ने अकेलेपन की समस्या को और गंभीर बना दिया है। वर्ष 2023 में WHO ने अकेलेपन की समस्या से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आयोग का गठन भी किया।

अकेलापन युवाओं और बुजुर्गों दोनों को प्रभावित कर रहा
विशेषज्ञ बताते हैं कि वृद्ध लोगों में अकेलेपन के कारण डिमेंशिया का खतरा 50% तक बढ़ जाता है, जबकि हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा 30% तक अधिक हो जाता है। वहीं, युवाओं में भी अकेलापन बढ़ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, 5% से 15% किशोर अकेलापन महसूस करते हैं। अफ्रीका में अकेलेपन की दर 12.7% है, जबकि यूरोप में यह 5.3% है।

डिजिटल कनेक्शन के बावजूद बढ़ता अकेलापन
आज के तकनीकी युग में मोबाइल, वीडियो कॉल, सोशल मीडिया के जरिए जुड़ाव पहले से ज्यादा आसान हो गया है, लेकिन इसके बावजूद अकेलेपन की समस्या कम नहीं हुई। आभासी रिश्ते असल जीवन के अकेलेपन को भर नहीं पाते। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सतह पर जुड़ाव दिखाने वाला एक तात्कालिक संबंध है, जिसमें वह अपनापन और सहारा नहीं मिलता जिसकी इंसान को सच्चे में जरूरत होती है।

विशेषज्ञों की राय
WHO के सोशल कनेक्शन कमीशन के सह-अध्यक्ष डॉ. विवेक मूर्ति का कहना है कि अकेलापन मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार और अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर डाल रहा है। युवाओं में स्क्रीन टाइम और नकारात्मक ऑनलाइन व्यवहार मानसिक तनाव को बढ़ा रहे हैं। वहीं, सामाजिक जुड़ाव स्वस्थ, लंबी और खुशहाल जिंदगी के लिए आवश्यक है। अकेलापन स्ट्रोक, हृदय रोग, मधुमेह, स्मृति कमजोरी और समय से पूर्व मृत्यु का खतरा बढ़ाता है।

निष्कर्ष
कोरोना महामारी के बाद अकेलापन अब एक नई साइलेंट महामारी के रूप में उभर रहा है। यह समस्या केवल मानसिक नहीं बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा है। इसलिए समाज, परिवार और सरकारों को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है ताकि हर वर्ग को इस खतरे से बचाया जा सके और स्वस्थ जीवन सुनिश्चित किया जा सके।