कुंभ का जायका: महाकुंभ में आएं तो घाट पर चाय से लेकर फूड कोर्ट्स में अलग-अलग रेस्टोरेंट्स के जायके ले सकते हैं।अगर आपके पास पैसे न हों या सादा खाना पसंद करते हों तो भी चिंता मत कीजिए। यहां चल रहे सैकड़ों छोटे-बड़े भंडारे हर दिन लाखों लोगों को मुफ्त में खाना खिलाते हैं।अखाड़ों या संतों के आश्रमों में चलने वाले भंडारों से अलग विभिन्न निजी संस्थाओं के ये भंडारे सुबह 6 बजे चाय-नाश्ते से लेकर रात के डिनर तक कराते हैं।
राह चलते लोगों को बुला-बुलाकर खिलाते हैं खाना कुंभ सिटी में पूरे दिन कहीं न कहीं, कोई न कोई भंडारा चलता ही रहता है। मनुहार ऐसी कि राह चलते लोगों को प्यार से बुला-बुलाकर भंडारे में बिठाया जाता है। गुजरात के बापा सीताराम अन्नक्षेत्र से जुड़े भरत सिंह बताते हैं कि उनके भंडारे में आम दिनों में 10 हजार लोग खाना खाते हैं। जबकि अमृत स्नान और ज्यादा भीड़ वाले दिनों में खाना खाने वालों की संख्या 15 हजार से भी ज्यादा होती है।
रसोइयों में साफ सफाई, मशीनों से गूंथा जाता है आटा बापा सीताराम जैसे बड़े अन्नक्षेत्रों में रसोई में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है। रसोई का इलाका हमेशा ढका होता है। ज्यादातर भंडारों में आटा गूंथने का काम भी मशीनों से किया जाता है।
सब्जियां, मसाले और अनाज रसोई के साथ बने भंडार गृह में रखे जाते हैं जहां बिना कोठारी की अनुमति के कोई नहीं जा सकता।
कहीं डिस्पोजेबल प्लेट्स का इस्तेमाल तो कहीं खाने वाले प्लेट धोकर रखते हैं ज्यादातर भंडारों में आमतौर पर कागज या पत्तों की बनी डिस्पोजेबल प्लेट्स का इस्तेमाल होता है। लोग खाना खाने के बाद अन्नक्षेत्र में ही बने डस्टबिन्स में इन पत्तलों को फेंकते हैं जहां से सफाईकर्मी इन्हें ले जाते हैं। वहीं बापा सीताराम अन्नक्षेत्र और नारायण सेवा संस्थान के भंडारे ऐसे भी हैं जहां स्टील और प्लास्टिक की प्लेट्स का इस्तेमाल होता है।
बापा सीताराम अन्नक्षेत्र में अनूठी व्यवस्था ये भी है कि खाना खाने वाले पूरी श्रद्धा से अपनी थाली धोकर रखते हैं।
पंगत में बिठाकर परोसते हैं सादा भोजन, साथ में मिठाई भी छोटे भंडारे सड़क किनारे टेबल पर बर्तन सजाकर आते-जाते लोगों को खाना बांटते हैं। जबकि बड़े भंडारों में खाने के हॉल बने हैं जहां लोगों को पंगतों में बिठाकर खाना परोसा जाता है।
यहां खाने में दाल, चावल, सब्जी या खिचड़ी रहती है। कई भंडारों में दोपहर और रात के भोजन के साथ बालूशाही, बर्फी और बूंदी जैसी मिठाइयां भी परोसी जाती हैं।
घाट पर चाय बेचने वाले बने कुंभ की पहचान भंडारों से इतर भी कुंभ में कई तरह के स्वाद मिलते हैं। स्नान घाटों पर श्रद्धालुओं, पंडों के बीच केतली हाथ में लिए हुए चाय बेचने वाले भी कुंभ की पहचान बन गए हैं।
पांटून पुल-1 के पास स्नान घाट पर चाय बेचते रंजीत से हमने बात की। रंजीत यहां बरेली से सिर्फ चाय बेचने के लिए आए हैं।
रंजीत कहते हैं कि नदी में नहाने के बाद लोगों को ठंड लगती है, ऐसे में उन्हें चाय पिलाना भी पुण्य का काम है। साथ ही इससे उनकी कमाई भी हो जाती है।
कुंभ में जगह-जगह बने हैं फूड कोर्ट्स, नामी रेस्टोरेंट्स ने भी लगाए हैं स्टॉल कुंभ सिटी में कई जगह फूड कोर्ट्स बने हुए हैं। यहां प्रयागराज के रेस्टोरेंट्स के साथ ही दिल्ली और कई दूसरे शहरों के रेस्टोरेंट्स ने अपने स्टॉल लगाए हैं। इन फूड कोर्ट्स में रीजनेबल दामों पर खाना मिलता है। हां, ये खास ख्याल रखा जाता है कि खाना पूरी तरह सात्विक हो।
इसके अलावा कुंभ सिटी में चलते हुए आपको रास्ते के किनारे मोमोज, चाऊमीन और पानीपूरी जैसे स्ट्रीट फूड्स की दुकानें भी दिख जाएंगी। यानी कुंभ में आने वाले हर श्रद्धालु को उसकी आर्थिक स्थिति और पसंद के स्वाद के हिसाब से खाना जरूर मिल जाएगा।