हिमाचल: अपनी प्राकृतिक धारा खोती सतलुज नदी, पारिस्थितिकी पर बढ़ता खतरा

हिमाचल: अपनी प्राकृतिक धारा खोती सतलुज नदी, पारिस्थितिकी पर बढ़ता खतरा

18 नवंबर, 2025 फैक्ट रिकॉर्डर

Himachal Desk: हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी का प्राकृतिक स्वरूप तेजी से बदल रहा है, जिससे प्रदेश की पारिस्थितिकी पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। वैदिक काल से अपनी पहचान रखने वाली यह नदी लगभग 100 किलोमीटर दूरी तक जलाशयों में कैद हो चुकी है और लगभग इतनी ही लंबाई तक सुरंगों में बहने को मजबूर है। पनबिजली विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् इंजीनियर आर.एल. जस्टा ने सतलुज घाटी में बढ़ते पर्यावरणीय असंतुलन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है।

विशेषज्ञों के अनुसार सतलुज ताल की 11,096 मेगावाट क्षमता में से 6,177 मेगावाट का दोहन हो चुका है और 968 मेगावाट की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। घाटी में बार-बार हो रहे हस्तक्षेपों के कारण मीथेन उत्सर्जन बढ़ रहा है, हिमरेखा पीछे जा रही है और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यह बदलाव भविष्य में पर्यावरण, कृषि और स्थानीय निवासियों के जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

किन्नौर की भू-संरचना पर बढ़ता दबाव

कई दशकों से चल रहे जलविद्युत परियोजनाओं ने किन्नौर की नाजुक भू-संरचना को अस्थिर कर दिया है। सेब बगीचों की नमी में कमी, पेयजल स्रोतों का सूखना, भूस्खलनों में वृद्धि और घरों में आ रही दरारें स्थानीय लोगों की बड़ी समस्याएं बन चुकी हैं। जंगी-थोपन, थोपन-पोवारी, शोंगटोंग-कड़छम, कड़छम-वांगतु, नाथपा-झाकड़ी, लूहरी-सैंज तथा भाखड़ा जैसे बड़े प्रोजेक्ट घाटी के प्राकृतिक संतुलन को लगातार प्रभावित कर रहे हैं।

सतलुज का सफर

राक्षसताल के पास से उद्गम लेकर सतलुज शिपकी-ला के रास्ते हिमाचल में प्रवेश करती है और यहां से लगभग 320 किलोमीटर बहते हुए भाखड़ा बांध तक पहुंचती है। आगे यह मैदानों में कई रूप बदलते हुए अरब सागर में समाहित हो जाती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सुरंगों और जलाशयों ने सतलुज का किन्नौर वाला प्राकृतिक सौंदर्य छीन लिया है। हालांकि यह निष्कर्ष निकालने से पहले कि हाइड्रो प्रोजेक्ट ही इसके मुख्य कारण हैं, विस्तृत और वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक है।